A uthor : Abhishek Mishra ; Lucknow 19 June 2 020 Follow on : Facebook | Twitter | Linkedin | What's app इक बार पुनः मैं टूट गया शायद सपने बुनते बुनते, इक बार पुनः सब छूट गया, बस उम्मीदें चुनते चुनते, शायद मेरी बहु उम्मीदें ही इस टूटे दिल की दायी हैं मेरा बच्चों सा जिद्दीपन ही सब खोने में उत्तरदायी है।। मेरे टूटे इस दिल का बस तुम एक सहारा बन जाओ जलमग्न हुई मेरी आशाओं का एक किनारा बन जाओ, हमराह बनो इन सपनों का फिर से विश्वास जगा जाओ जीवित हूँ अबतक आशा में इक बार पुनः फिर आ जाओ।। धूमिल होती.... मेरी उम्मीदों में फिर पंख से लगाओ तुम, जो खोया है तुमको पाने में वो आत्मविश्वास जगाओ तुम। जीवन अभी बहुत लंबा यूं तन्हा चलना मुश्किल होगा...... पर तुमसा हमसफ़र मिला शायद तो फिर सबकुछ मुमकिन होगा।। सच पूछो तो रो रो कर भी शायद तुमको भुला नहीं पाया, बस ख्वाबों में तुमको देख देख.....शायद मैं अब तक जी पाया। खुद ही में खुद से रोया हूँ, खुद ही खुद को सुनते सुनते, इक बार पुनः मैं टूट गया शायद सपने ...
"भेष देख मत भूलिये,बूझि लीजिये ज्ञान, बिन कसौटी होत नहीं,कंचन की पहिचान" एक स्वघोषित लेखक, विचारक एवं विश्लेषक के तौर पर संवैधानिक दायरे में रहकर अपनी स्वतंत्र-स्वच्छन्द लेखनी से आपकी सेवा में हाजिर हूँ। मेरे बारे में अधिक जानकारी के लिए परिचय(पृष्ठ) जरूर पढें... आपका स्नेहाकांक्षी! अभिषेक मिश्र "सत्य" 9918233378