चखा था जो कभी, इश्क को इत्तेफाक से हमने चखा था जो कभी, इश्क को इत्तेफाक से हमने छाले आज भी जुबान की फितरत बिगाड़ देते हैं मिले थे सुर्ख शोले शब्द बनकर जो नसीहत में याद आकर वो बेब...
"भेष देख मत भूलिये,बूझि लीजिये ज्ञान, बिन कसौटी होत नहीं,कंचन की पहिचान" एक स्वघोषित लेखक, विचारक एवं विश्लेषक के तौर पर संवैधानिक दायरे में रहकर अपनी स्वतंत्र-स्वच्छन्द लेखनी से आपकी सेवा में हाजिर हूँ। मेरे बारे में अधिक जानकारी के लिए परिचय(पृष्ठ) जरूर पढें... आपका स्नेहाकांक्षी! अभिषेक मिश्र "सत्य" 9918233378