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Mahatma Gandhi "Sanitation is more important than independence". |
Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 26 August 2018
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●●तकरीबन डेढ़ हफ्तों से हमारे Kitchen में कूड़ों का ढेर लगता चला जा रहा है, एक पन्नी भर गयी तो दूसरी फिर तीसरी और ऐसे न जाने कितनी पन्नियों में मेरे साथ रह रहे दोस्तों ने भावी पीढ़ी की अमानत सहेज रखा है। पॉलिथीन की अनुपलब्धता पर खुले में कूड़ा रख देना या फिर मेरी नसीहत भरी झलल्लाहट को हंसकर झेल जाना, अब इनके स्वाभाविक धर्म में शामिल हो चुका है। इन महाबुद्धजीवियों से कूड़ा फेंकने की विनती का मतलब है इनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा देना, और सलाह का सीधा मतलब है खुद को मूर्ख साबित कर लेना।
कूड़े की सड़न और दुर्गन्ध मुझसे बर्दाश्त तो नही होती, परन्तु "शठे शाठयम् समाचरेत्" का स्मरण कर अब हम भी पूरी तरह अभ्यस्त हो चुके हैं। एकाध हफ्ते की प्रतीक्षा के बाद जब किसी सज्जन की अंतरात्मा जागृत नही होती तो अंततः हार मानकर मैं अपनी नैतिकता पर उतर ही आता हूँ, कहने का मतलब हर बार वो दुर्गन्ध भरा कूड़ा मैं ही फेंकता हूँ।
दरअसल महात्मा गांधी को गहनता से पढ़ने के बाद मैं समझ चुका हूँ कि जब तक किसी कार्य के प्रति आपके मन में हीन भावना (घृणा i.e. Inferiority Complex) बनी रहेगी तब तक, उस कार्य को करने की इच्छाशक्ति , आप में पनप ही नही सकती। और बिना इच्छाशक्ति के कोई भी कार्य स्वेच्छया किया जाना पूरी तरह असम्भव है। निश्चित तौर पर ऐसी ही कोई हीन भावना हमारे उन मित्रों के मन में बसी है, जो अपने परिवेश की साफ-सफाई/कचरा फेंकना इत्यादि हीन कार्य मानकर घर में कचरों का ढेर लगाए जा रहे हैं।
कूड़ा-कचरा उठाने को लेकर लोगों के मन में बसी इसी हीन भावना को बाहर निकालने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं घर घर जाकर लोगों के शौचालय साफ किये, लोगों को स्वच्छता हेतु प्रेरित किया। "मतलब हम कूड़ा-करकट उठाएंगे.......?" लोगों के ज़ेहन में बसी शायद इसी हीनता को समाप्त करने के लिए सवा सौ करोड़ आबादी के मुखिया, प्रधानमंन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 को झाड़ू उठा लिया, देश भर में स्वच्छ भारत अभियान चलाया गया और गांधी के स्वप्न को साकार करने की पुरजोर कोशिश हुई।
कूड़े की सड़न और दुर्गन्ध मुझसे बर्दाश्त तो नही होती, परन्तु "शठे शाठयम् समाचरेत्" का स्मरण कर अब हम भी पूरी तरह अभ्यस्त हो चुके हैं। एकाध हफ्ते की प्रतीक्षा के बाद जब किसी सज्जन की अंतरात्मा जागृत नही होती तो अंततः हार मानकर मैं अपनी नैतिकता पर उतर ही आता हूँ, कहने का मतलब हर बार वो दुर्गन्ध भरा कूड़ा मैं ही फेंकता हूँ।
दरअसल महात्मा गांधी को गहनता से पढ़ने के बाद मैं समझ चुका हूँ कि जब तक किसी कार्य के प्रति आपके मन में हीन भावना (घृणा i.e. Inferiority Complex) बनी रहेगी तब तक, उस कार्य को करने की इच्छाशक्ति , आप में पनप ही नही सकती। और बिना इच्छाशक्ति के कोई भी कार्य स्वेच्छया किया जाना पूरी तरह असम्भव है। निश्चित तौर पर ऐसी ही कोई हीन भावना हमारे उन मित्रों के मन में बसी है, जो अपने परिवेश की साफ-सफाई/कचरा फेंकना इत्यादि हीन कार्य मानकर घर में कचरों का ढेर लगाए जा रहे हैं।
कूड़ा-कचरा उठाने को लेकर लोगों के मन में बसी इसी हीन भावना को बाहर निकालने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं घर घर जाकर लोगों के शौचालय साफ किये, लोगों को स्वच्छता हेतु प्रेरित किया। "मतलब हम कूड़ा-करकट उठाएंगे.......?" लोगों के ज़ेहन में बसी शायद इसी हीनता को समाप्त करने के लिए सवा सौ करोड़ आबादी के मुखिया, प्रधानमंन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 को झाड़ू उठा लिया, देश भर में स्वच्छ भारत अभियान चलाया गया और गांधी के स्वप्न को साकार करने की पुरजोर कोशिश हुई।
निः संदेह स्वच्छ भारत अभियान कोई योजना नही अपितु एक प्रेरणा थी, जिसे हम सब आत्मसात कर अपने परिवेश को साफ सुथरा करने की जिम्मेदारी स्वीकार सकते थे। परन्तु अफ़सोस...! आरोप-प्रत्यारोप के परस्पर द्वंद में उलझ कर अपनी जिम्मेवारियों को भूल जाना, अब हम भारतवासियों की आनुवांशिकता में समा चुका है। बेशक, यही वजह है कि स्वच्छ भारत हम सब की चर्चाओं तक ही सिमट कर रह गया।
Abhishek Mishra
LL.B Hons.(P.),
Lucknow University
#Yours'Commemt @aksatya100
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