Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 5 May 2019
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●●●आजकल अधिकांश लोगों के मुंह से सुनाई पड़ता है कि मोदी नही तो फिर कौन???.... यह हमारे समाज के लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक सुचिता में आई गिरावट का परिणाम है। ये हमारा दुर्भाग्य ही है कि तकरीबन 75 करोड़ मतदाताओं वाले वृहत लोकतंत्र में देश के युवाओं को विकल्प शून्यता महसूस हो रही है। मैं पहले भी लिख चुका हूं और पुनः कह रहा हूँ कि विकल्प शून्यता एवं गैर जागरुक मतदाता लोकतंत्र के लिए अभिशाप हैं। एतएव ऐसी भयावह स्थिति से देश को बचाना हम सब का सामूहिक दायित्व है......
1951 के प्रथम आम चुनाव में जब देश की साक्षरता 18 फीसद थी तब बुद्धजीवी विद्वान एवं प्रकांड मनीषियों से सदन सुशोभित था और आज जब हमारी साक्षरता 75 फीसद होने को है तब हम गुंडा मवाली, पुस्तैनी पेशेवर नेता अभिनेता, भू माफिया खनन माफिया डकैत और तस्करों को सदन में चुन कर भेजते हैं ....आखिर ये लोकतांत्रिक सुचिता में गिरावट नही तो क्या है??
मेरी अल्पज्ञता के मुताबिक लोकतंत्र की संकल्पना दो मूलभूत अधिकारों पर टिकी है जिसमें पहला है चुनने का अधिकार एवं दूसरा है चुने जाने का अधिकार ... यदि मतदान प्रतिशतता पर नज़र फेरी जाए तो मालुम पड़ता है कि बीते 7 दशकों से हम अभी तक पहले अधिकार को ही ढंग नही जान पाए हैं....... ऐसे में दूसरे पर चर्चा का तो कोई प्रश्न ही नही ...
फिलहाल दिनकर जी की चंद उधार पंक्तियों के हवाले आपकी टिपण्णी चिंतन एवं अध्ययन हेतु एक विषय छोड़े जा रहा हूँ ........
वह संसार जहाँ पर पहुँची अब तक नहीं किरण है,
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर-वरण है।
पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात दशक हो गए राह में अटका कहाँ स्वराज?
समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा।
जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुँचाना होगा।
धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं,
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं,
कह दो उनसे झुके अगर तो जग में यश पाएँगे,
अड़े रहे तो ऐरावत पत्तों -से बह जाएँगे।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।....
1951 के प्रथम आम चुनाव में जब देश की साक्षरता 18 फीसद थी तब बुद्धजीवी विद्वान एवं प्रकांड मनीषियों से सदन सुशोभित था और आज जब हमारी साक्षरता 75 फीसद होने को है तब हम गुंडा मवाली, पुस्तैनी पेशेवर नेता अभिनेता, भू माफिया खनन माफिया डकैत और तस्करों को सदन में चुन कर भेजते हैं ....आखिर ये लोकतांत्रिक सुचिता में गिरावट नही तो क्या है??
मेरी अल्पज्ञता के मुताबिक लोकतंत्र की संकल्पना दो मूलभूत अधिकारों पर टिकी है जिसमें पहला है चुनने का अधिकार एवं दूसरा है चुने जाने का अधिकार ... यदि मतदान प्रतिशतता पर नज़र फेरी जाए तो मालुम पड़ता है कि बीते 7 दशकों से हम अभी तक पहले अधिकार को ही ढंग नही जान पाए हैं....... ऐसे में दूसरे पर चर्चा का तो कोई प्रश्न ही नही ...
फिलहाल दिनकर जी की चंद उधार पंक्तियों के हवाले आपकी टिपण्णी चिंतन एवं अध्ययन हेतु एक विषय छोड़े जा रहा हूँ ........
वह संसार जहाँ पर पहुँची अब तक नहीं किरण है,
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर-वरण है।
पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात दशक हो गए राह में अटका कहाँ स्वराज?
समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा।
जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुँचाना होगा।
धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं,
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं,
कह दो उनसे झुके अगर तो जग में यश पाएँगे,
अड़े रहे तो ऐरावत पत्तों -से बह जाएँगे।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।....
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