Respect Girls : A Request Towards New Generation
Aurthor : Abhishek Kumar Mishra "aksatyta"
Sunday, February 12, 2017, Luknow (U.P)
पढ़ाई के लिए घर से दूर निकलने के लड़कियों को ऐसी बहुत सारी ऐसी समस्याएं झेलनी पड़ती है जो वास्तव में असहनीय होती है चाहे वो समस्याएं कुछ मनचले लोगों के छेड़खानी का हो या रास्ते में जाते समय अशोभनीय टिप्पणीयों (Comments ) का हो।(तो आइये आगे जानते हैं Girls की ऐसी ढेर सारी समस्याओं को.........................................)
Respect girls : A request to new generation
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Stalkings : general problem |
एक सन्देश युवाओं के नाम,
प्रिय भाईयों बहनो यह सिर्फ एक पोस्ट नही है जिसे पढ़ कर आप
लाइक करे बल्कि यह राष्ट्र के नाम एक आवाहन है दोस्तों हमारे देश को आज़ादी
जरूर 1947 में मिल गई और आजादी के पश्चात अपना संविधान बनाया गया जिसमें यह
बात शामिल की गई कि
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी
पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों
को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी ( मिति माघशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
-( संविधान की प्रस्तावना से.....)
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी ( मिति माघशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
-( संविधान की प्रस्तावना से.....)
यह बात हम भारतीयों ने एक होकर 1949 में भले ही स्वीकार लिया
हो परन्तु आज भी समाज में सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतंत्रता शायद एक
सपना ही है ।
चलिये मैं अपनी बात पर आता हूँ आज भी हमारे समाज में महिलाओं मुख्यतः छात्रों को जो शिक्षा के लिए अपने घरों को छोड़ का दूर दराज के शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेती है आज भी वे सामाजिक न्याय और स्वन्त्रता जैसी संविधान के मूल भावनाओं से वंचित है । घर से दूर जाने के बाद उन्हें बहुत सारी ऐसी समस्याएं झेलनी पड़ती है जो वास्तव में असहनीय होती है चाहे वो समस्याएं कुछ मनचले लोगों के छेड़खानी का हो या रास्ते में जाते समय अशोभनीय टिप्पणीयों का हो।
सड़क पर चलते हुए लड़कियों को बहुत सारी बाते सुनना भी पड़ता है और सुनकर भूलना भी पड़ता है और इसके लिए कोई और जिम्मेदार नही बल्कि जिम्मेदार है हम जैसे वो सभी लोग जिन्होने ये कहा था कि हम भारत के लोग सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता को अंगीकृत करते है बस ये स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय क्या बस आप ही को चाहिए । नही न !!!!!!!!!!!!
चलिये मैं अपनी बात पर आता हूँ आज भी हमारे समाज में महिलाओं मुख्यतः छात्रों को जो शिक्षा के लिए अपने घरों को छोड़ का दूर दराज के शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेती है आज भी वे सामाजिक न्याय और स्वन्त्रता जैसी संविधान के मूल भावनाओं से वंचित है । घर से दूर जाने के बाद उन्हें बहुत सारी ऐसी समस्याएं झेलनी पड़ती है जो वास्तव में असहनीय होती है चाहे वो समस्याएं कुछ मनचले लोगों के छेड़खानी का हो या रास्ते में जाते समय अशोभनीय टिप्पणीयों का हो।
सड़क पर चलते हुए लड़कियों को बहुत सारी बाते सुनना भी पड़ता है और सुनकर भूलना भी पड़ता है और इसके लिए कोई और जिम्मेदार नही बल्कि जिम्मेदार है हम जैसे वो सभी लोग जिन्होने ये कहा था कि हम भारत के लोग सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता को अंगीकृत करते है बस ये स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय क्या बस आप ही को चाहिए । नही न !!!!!!!!!!!!
तो साहब भारतीय होने के नाते यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप ने वो जो कसम खाई थी संविधान बनाते वक्त उसे पूर्ण करने में सहयोग करे और एक सभ्य समाज की स्थापना करें ।
छात्राएं बहुत सी समस्यों को लेकर शायद इसके खिलाफ आवाज उठाने से डरती है क्यू की वो डरती है समाज की मर्यादाओं से और अपने परिवार की इज्जत से तो आप भी इसका लिहाज करिये और आप की जिम्मेदारी है कि ऐसे मनचलों के खिलाफ खड़े हो क्यू की आज वो झेल रही है कल इसमें से एक आपकी बहन बेटियां भी हो सकती है अगर वसुधैव कुटुम्बकम में आस्था हो तो ।
और हाँ ऐसे दानवो से लड़ने के लिए आगे आना होगा सभी ऐसे लोगों को जो या तो ऐसी समस्यों से पीड़ित है या जो इसके विरोध में है साथ ही सरकार के भरे कानो और पट्टी बंधी आँखों तक ये समस्या पहुँचाने के लिये हाथ आगे बढ़ाना होगा सभी संगठनों को जो अपने आप को विद्यार्थियो का मसीहा कहते है क्यू की वास्तव में समाजिक न्याय और स्वतंत्रता को यदि संविधान के पन्नो से जमीन पर लाना है तो सरकार को इन विषयों पर सख्त कानून बनाना होगा और व्यवस्था करनी होगी ऐसे प्रशासन की जो ऐसे मनचलों को सुधार कर संविधान की आशाओं को साकार कर सके ।
दोस्तों ये मेरी व्यक्तिगक्त संवेदना जरूर हो सकती है लेकिन आस पास झांक के देखियेगा आप को भी ये समस्याएं दिखेंगी ।
अगर आपको भी सच लगे तो आवाज उठाइये इसके खिलाफ बिना डरे बिना रुके और बिना कुछ सोचे ।
ये विषय सिर्फ मेरी व्यक्तिगक्त संवेदनाए ही नही बल्कि ये सामाजिक सुरक्षा से जुडी है।
- Abhishek Mishra "aksatya"
9918233378
विधि विद्यार्थी
लखनऊ विश्वविद्यालय
संगठन मंत्री
डॉ कलाम शिक्षा एवं सेवा संस्थान उत्तर प्रदेश
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विधि विद्यार्थी
लखनऊ विश्वविद्यालय
संगठन मंत्री
डॉ कलाम शिक्षा एवं सेवा संस्थान उत्तर प्रदेश
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