अगर ह्रदय में नारी का सम्मान नही तो फिर नवरात्री में उपवास का क्या औचित्य ??
Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 19 March 2018
Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 19 March 2018
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नवरात्री 2018 |
आज से नवरात्रि का प्रारंभ है, ज्यादातर लोगों को मैने व्रत रखते हुए देखा
है। अपनी क्षमता अनुसार कुछ नौ दिन का तो कुछ शुरुवाती और आखिरी दिन ही रहते हैं। 9-10 दिन मंदिरों का व्यापार भी अपने चरम पर आ
जाता है,
क्योंकि
श्रद्धालु आगंतुकों की संख्या में अपार वृद्धि जो हो जाती है। धर्म-कर्म, मंदिर जाना अच्छी बात है कम से के इसी बहाने
तमाम लोगों की जीविका चल जाती है, बेरोजगारों को मुह का निवाला मिल जाता है।
आजकल युवाओं और
युवतियों (Youths)
में मंदिर जाना, व्रत रखना एक विशेष Trend के रूप में उभर कर आया। वजह कुछ भी हो पर काम
नेक है सो मैने भी कभी वजह जानने की चेष्ठा नही की। मैं मंदिर बिल्कुल न के बराबर जाता हूँ
परन्तु मुझे ख़ुशी होती है मंदिर के बाहर जमा भीड़ देख कर, एक आशा जगती है कि शायद इन युवाओं का सदविचार
एक नया समाज गढ़ने में सहायक हो।दोस्तों मुझे
आजतक एक बात समझ नही आई ,
मारे सामज के
अधिकतम युवा शक्ति के उपासक हैं, नवरात्रि में विश्वास रखते हैं फिर भी महिलाएं/बालिकाएं सुरक्षित नही आखिर
क्यों......? क्या वो मंदिर के बाहर लगी युवाओं की भीड़ एक
दिखावा मात्र है?
क्या उस भीड़ का
हिस्सा बने युवक युवतियों को नवरात्रि का सही मायने और इतिहास भी नही मालूम....? अगर ऐसा है तो सच में ये भक्ति एक ढोंग मात्र
ही है ।
आज मैं सड़क के
किनारे मित्रो के साथ खड़ा था उसमें से एकाध नवरात्रि का व्रत भी थे पर मैं नही।
सड़क से लड़कियों का एक झुंड काफी बन ठन कर निकल रहा था, कुछ क्षण के लिए वह झुंड हम सब के
आकर्षण का केंद्र बन गया। साथ खड़े एक मित्र ने लपककर टिपण्णी कर दी, मुझे बड़ा कष्ट हुआ। मुझसे रहा नही गया और
मैने भाई साहब की क्लास लगा दी। मेरा पहला सवाल था क्या आप व्रत हैं, जनाब ने बड़े गर्व से उत्तर दिया जी !.. अब तो जैसे मुझे
मौका ही मिल गया हो,
मैने उनसे
नवरात्रि का सही मायने पूछा, घूमा फिराकर कर वो कन्याओं के पूजन और शक्ति उपासना तक पहुंचे। मुझे हंसी आई कि लोग एक तरफ नारी शक्ति
की उपासना करते हैं व्रत रखते हैं, कन्या पूजन करते हैं। और दूसरी तरफ उसी नारी के लिए समाज में एक असुरक्षित माहौल
पैदा करते हैं,
रास्ते में जा
रही लड़कियों पर टिका टिपण्णी करते हैं। इससे भी बढ़कर कुछ महापुरुष छेड़छाड़ जैसी तमाम
अभद्र हरकतों तक आ गिरते हैं।
अगर सच में हम
नारी शक्ति का सम्मान नही कर सकते तो क्या औचित्य है हमारे व्रत और उपवास का, क्या यह महज एक ढोंग नही कि हम नौ दिन का
उपवास रख कर नौ देवियों की आराधना करें और हमारे आस पास की असंख्य नारी शक्तियां
एक असुरक्षित माहौल में रहने को विवश रहें।
हम सब को
"जगद्जननी शक्तिरूपा नारायणी नमस्तुभ्यं।" मंत्र के साथ इस नवरात्रि पर
नारी सम्मान के एक कठोर व्रत की आवश्यकता है, शायद इस कठोर व्रत के बाद हमे नवरात्रि व्रत की सार्थकता समझ आ जाये। सिर्फ नौ
देवियों की नही बल्कि हमे हर नारी के सम्मान का संकल्प लेना होगा, तभी हम अपनी आने वाले पीढ़ियों को नवरात्रि का
इतिहास बता पाएंगे।
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