हर मनुष्य की सबसे बड़ी खामी होती है, स्वयं को दूसरों के समक्ष अच्छा दिखाना शायद मैं भी उन सब से नहीं बच पाया : Memoirs of my life
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My Platonic Love !.....forever |
Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 14 July 2020
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चिंताएं सदैव चिंतनशील व्यक्ति ही करता है, अचिंतनशील व्यक्ति सदैव उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर अवधारणाओं का जाल बुनता रहता है............
______________________________________________●●●●सचमुच इस बीच मैं टूटा.... मैं रोया और मैंने बहुत कुछ खोया इन सबके बीच न जाने कितनी रातें बिना सोए गुजर गयीं......जीवन में कुछ हासिल हुआ या ना हुआ हो लेकिन एक अच्छा इंसान बनने की होड़ में सबके लिए मेरी सहज उपलब्धता ने मुझे मुझसे अलग कर दिया अपयश अपमान और अनिष्टता के भय से उपजी चिंताओं के बीच न जाने कितनी रात बिन सोए गुजर गई। चिंताएं सदैव चिंतनशील व्यक्ति ही करता है, क्योंकि उसमें आगे पीछे और दूर तक देख पाने की दूरदर्शिता होती है, उसे अपने और दूसरों के मान सम्मान यश-अपयश की फिक्र होती है।
अचिंतनशील व्यक्ति सदैव अपनी उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर अहर्निश अवधारणाओं का जाल बुनता रहता है, बिना अतीत और दूर का सोचे कई मरतबा स्वयं ईश्वर भी उसके शक-संदेह से नहीं बच पाते। उसके जीवन में कुछ भी अनिष्ट हो जाए वो तो ईश्वर को भी दोष देने में नहीं हिचकता .......
फिर मैं तो एक अदना सा आदर्शवादी अपने विचार अपने वसूलों का पक्का, अपने सच पर अडिग एक मामूली सा साधारण मनुष्य......... जिससे जीवन में गलतियां हो जाना तो स्वाभाविक हैं। आखिरकार यही तो मनुष्य स्वभाव है कि वह हर रोज गलतियां करता है , और उन गलतियों से कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करता है। आखिर यही तो है जो हमें मनुष्य बनाता है.....
हर मनुष्य की सबसे बड़ी खामी होती है, स्वयं को दूसरों के समक्ष अच्छा दिखाना शायद मैं भी उन सब से नहीं बच पाया ....... स्वयं को निर्दोष बता कर मुझमें ईश्वर बनने की कोई लालसा नहीं है। निश्चित तौर पर मुझसे कुछ गलतियां हुई हैं, और उनका मुझे आभास है....... उन सबके लिए मेरे पास प्रायश्चित और उनकी पुनरावृत्ति से बचने का दृढ़ संकल्प लेने के सिवाय कुछ भी शेष नहीं है।
जो मेरे अपने हैं निश्चित तौर पर मुझे समझने का प्रयास करेंगे और मेरे लाख गलत होने के बाद भी मेरे साथ खड़े होंगे और जिन्हें इतना कुछ कहने के बाद भी मुझ पर शक है, जिन्हें मेरे आदर्श मेरे वसूलों पर अब भी संदेह है, वो मेरे अपने हो ही नहीं सकते हैं, मुझे उनसे कोई अपेक्षा है ही नहीं ...............वह अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं, मैं पूरी ईमानदारी से सच साथ लिए सज्य रहूंगा।
मैं इस अनावश्यक अवसाद और विवाद से बाहर निकल कर पुनः अपनी उस दुनिया में वापस जाना चाहता हूं, जहां हर पल मेरी शक्ति मेरी ताकत मेरा आत्मविश्वास बनकर मेरी किताबें हर वक्त मेरे साथ हों, उसके सिवा न कुछ मेरे जीवन में था, न है और न होगा .........हे दुनिया वालों मैं तुम्हारा निर्णय तुम पर छोड़ता हूँ!.....
Abhishek Mishra
LL.B Hons.(P.),
Lucknow University
#Yours'Commemt @aksatya100
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