Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 20 July 2020
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अच्छाई और बुराई की संगति में सामंजस तभी संभव है जब उनमें से कोई एक दूसरे पर पूरी तरह से हावी हो जाये......
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●●●गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं - सठ सुधरहिं सतसंगति पायी। पारस परस कुधात सुहाई।। अर्थात दुष्ट जन भी अच्छी संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस (पत्थर) के स्पर्श से लोहा सुंदर चमकीला बन जाता है।
जीवन में एक अच्छे इंसान की महत्ता सिर्फ एक अच्छा इंसान ही समझ सकता है.... क्योंकि अच्छा इंसान अपने स्वभाव के कारण सदैव बुराइओं के खिलाफ खड़ा रहता है, जब वह किसी इंसान में व्याप्त बुराइओं को बार बार इंगित करता है तो उन बुराइओं में लिप्त इंसान इसे अपने व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानकर छुपने छुपाने के प्रयास में उससे दूरी बनाना और कटना प्रारंभ कर देता है। उससे लगता है कि वह जो कर रहा उचित है किंतु हकीकत में वह एक अच्छा इंसान और सुधरने का एक अवसर खो देता है.....इसमें नुकसान उस अच्छे इंसान का नही अपितु बुराइओं में लिप्त उस इंसान का होता है जो अपनी जीवन शैली को उचित मानकर हठधर्मिता से पुनः उन्ही बुराइओं में संलिप्त हो जाता है। यही कारण है कि स्वयं को ही उचित मानने के भ्रम में हठधर्मी बुरे इंसान और सादगी सच्चाई से भरे इंसान की संगति अधिक देर तक नही टिक पाती....
बुराइओं में लिप्त इंसान को बारम्बार सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए किन्तु यदि सारे प्रयास निष्फल हों जाएं तो "खल संग होहिं न प्रीति" की नीति पर चलने का चुनाव करना चाहिए।
गोस्वमी तुलसीदास जी कहते हैं -
"सुनु खगपति अस समुझि प्रसंगा।बुध नहिं करहिं अधम कर संगा।
कवि कोविद गावहिं असि नीति।खल सन कलह न भल नहि प्रीती।"
अर्थात बुद्धिमान मनुष्य बुरे इंसान की संगति नही करते हैं। कवि एवं पंडितजन यही नीति कहते हैं
कि दुष्ट से न तो झगड़ा अच्छा है और न हीं प्रेम।
Abhishek Mishra
LL.B Hons.(P.),
Lucknow University
#Yours'Commemt @aksatya100
LL.B Hons.(P.),
Lucknow University
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