What is Love......?❤
Author : Abhishek Mishra ; Lucknow 27 July 2020
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एक दिन किसी ने मुझसे पूछा था प्यार क्या है..? उस समय ये शब्द मेरे लिए बिल्कुल नया सा था, इससे पहले न तो मुझे कभी हुआ था और न कोई अनुभव था। किन्तु आज अपने अनुभव और प्रयोग से इस निष्कर्ष तक पहुंचा हूँ कि;
"मेरे व्यक्तिगत नजरिये में प्यार वासना नहीं बल्कि लोभ-स्वार्थ अपेक्षा, सन्देह एवं खोने पाने के भय से मुक्त एक उपासना है......." एक ऐसे ईश्वर की उपासना जो कई बार आपको निराश करेगा, वह बहुत कुछ आपकी अपेक्षाओं/चाहतों के अनुरूप नहीं कर पायेगा, किन्तु उसमें आपकी अटूट आस्था सदैव बरकरार रहनी चाहिए।
वो आपको रोकेगा टोकेगा नहीं, आपकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप भी नही करेगा और न ही प्रत्येक क्षण आपकी तफ़सीस (Inquiry) कर पायेगा किन्तु यदि आपकी भक्ति अर्थात प्रेम सच्चा हुआ तो कोई भी अनुचित कदम उठाने का विचार मन में आते ही आपको लगेगा कि आपका ईश्वर (अर्थात प्रेमी/प्रेमिका) आपको देख रहा है, वो आपको माफ नहीं करेगा।
जिस दिन आपके भक्ति अर्थात प्रेम में इतनी ईमानदारी और सच्चाई आ गई कि आप अपने उस ईश्वर के समक्ष अपना उचित अनुचित सब कुछ स्वेच्छया स्वीकार (confess) करने लगे, उसी दिन से वो ईश्वर (अर्थात प्रेमी/प्रेमिका) सदा सर्वदा के लिए आपका हो जायेगा, वो आपके लिए आपकी स्वतंत्रता और निजता में व्यवधान (Irritation) नहीं बल्कि आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचाने में एक सकारात्मक मार्गदर्शक एवं आपकी ऊर्जा का स्रोत बन जायेगा।
छल लोभ मोह से निर्मुक्त होकर, सच्चाई निरंतरता और धैर्य के साथ आपका विश्वास यदि अपने ईश्वर(अर्थात प्रेमी/प्रेमिका) में बिना विचलित हुए अडिग बरकरार रह पाया तो वो आपको एक दिन अवश्य प्राप्त होगा।
"जो जेहि चाहै सत्य स्नेही सो तेहि मिलय न कछु संदेही"
निष्कर्षतः "प्यार लाभ हानि से मुक्त भावनाओं का परस्पर आदान प्रदान है, जो सम्बन्ध भावना विहीन होकर महज लाभ हानि तक सिमट जाए वह प्यार नही अपितु व्यापार है।" सच पूछो तो प्यार वो है जिसमें राधा जीवन भर कृष्ण का इंतज़ार कर सके, जिसमें कस्तूरबा के खातिर गांधी नमक जैसी आवश्यक वस्तु का भी परित्याग कर सके......... आज के युग का प्यार फिल्मी सा हो चला है किंतु स्मरण रहे कि प्यार की मिशाल आज भी राधा-कृष्ण को ही माना जाता है, महज चंद महीनों में ही वस्त्रों के भांति प्रेमी/प्रेमिका बदलने वाली इस फिल्मी दुनिया को नहीं........
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